दीप बना कर याद तुम्हारी, साँवरिया , मैं लौ बन कर जलती हूँ
प्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।
साँवरिया विरह तुम्हारी किया राधा सह पाएँगी
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
दग्ध ह्रदय में धधक रहे आहत पल के दंशों को अपने ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
प्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।
साँवरिया विरह तुम्हारी किया राधा सह पाएँगी
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
दग्ध ह्रदय में धधक रहे आहत पल के दंशों को अपने ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।
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