.. मीरा के भजन ..


    जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन . रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे . जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन .. गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे . जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन .. उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे . जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन . ग्वाल बाल सब करत कुलाहल जय जय सबद उचारे . जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन . मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आयाकूं तारे .. जागो बंसीवारे जागो मोरे ललन .
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    म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा .. तन मन धन सब भेंट धरूंगी भजन करूंगी तुम्हारा . म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा .. तुम गुणवंत सुसाहिब कहिये मोमें औगुण सारा .. म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा .. मैं निगुणी कछु गुण नहिं जानूं तुम सा बगसणहारा .. म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा .. मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन नैण दुखारा .. म्हारे घर आओ प्रीतम प्यारा ..
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    मैं तो सांवरे के रंग राची . साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची .. गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची . गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूं बांची .. उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची . मीरा श्रीगिरधरन लालसूं, भगति रसीली जांची ..
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    बसो मोरे नैनन में नंदलाल . मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल . अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल .. छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल . मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल ..
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    तनक हरि चितवौ जी मोरी ओर . हम चितवत तुम चितवत नाहीं मन के बड़े कठोर . मेरे आसा चितनि तुम्हरी और न दूजी ठौर . तुमसे हमकूं एक हो जी हम-सी लाख करोर .. कब की ठाड़ी अरज करत हूं अरज करत भै भोर . मीरा के प्रभु हरि अबिनासी देस्यूं प्राण अकोर ..
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    पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे .. मैं तो मेरे नारायण की, आपहि हो गै दासी रे . पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे . लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे . पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे . बिष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे . पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे . मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे . पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे .
    मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई .. जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई . तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई .. छांडि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई . संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई .. चुनरी के किये टूक ओढ़ लीन्ही लोई . मोती मूंगे उतार बनमाला पोई .. अंसुवन जल सीचि सीचि प्रेम बेलि बोई . अब तो बेल फैल गई आंणद फल होई .. दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई . माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई .. भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई . दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही ..
    सहेलियां साजन घर आया हो . बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो .. रतन करूं नेवछावरी ले आरति साजूं हो . पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो .. पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो . पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो . हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो . मरा सखी के आगणै दूधां बूठा मेह हो ..
    मैं गिरधर के घर जाऊं . गिरधर म्हांरो सांचो प्रीतम देखत रूप लुभाऊं .. रैण पड़ै तबही उठ जाऊं भोर भये उठि आऊं . रैन दिना वाके संग खेलूं ज्यूं त्यूं ताहि रिझाऊं .. जो पहिरावै सोई पहिरूं जो दे सोई खाऊं . मेरी उणकी प्रीति पुराणी उण बिन पल न रहाऊं . जहां बैठावें तितही बैठूं बेचै तो बिक जाऊं . मीरा के प्रभु गिरधर नागर बार बार बलि जाऊं ..
    पायो जी म्हे तो राम रतन धन पायो .. टेक .. वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो .. जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो .. खायो न खरच चोर न लेवे, दिन-दिन बढ़त सवायो .. सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भवसागर तर आयो .. ' मीरा' के प्रभु गिरधर नागर, हरस हरस जश गायो ..
    आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको .. घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा, दरसन गोविन्द जी को .. १ .. निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को . रतन सिंघासण आपु बिराजैं, मुकुट धर््यो तुलसी को .. २ .. कुंजन कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को . ' मीरा' के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको .. ३ ..
    नटवर नागर नन्दा, भजो रे मन गोविन्दा, श्याम सुन्दर मुख चन्दा, भजो रे मन गोविन्दा . तू ही नटवर, तू ही नागर, तू ही बाल मुकुन्दा , सब देवन में कृष्ण बड़े हैं, ज्यूं तारा बिच चंदा . सब सखियन में राधा जी बड़ी हैं, ज्यूं नदियन बिच गंगा, ध्रुव तारे, प्रहलाद उबारे, नरसिंह रूप धरता . कालीदह में नाग ज्यों नाथो, फण-फण निरत करता ; वृन्दावन में रास रचायो, नाचत बाल मुकुन्दा . मीरा के प्रभु गिरधर नागर, काटो जम का फंदा ..
    दूर नगरी, बड़ी दूर नगरी-नगरी कैसे आऊं मैं तेरी गोकुल नगरी दूर नगरी बड़ी दूर नगरी रात को आऊं कान्हा डर माही लागे, दिन को आऊं तो देखे सारी नगरी . दूर नगरी .. सखी संग आऊं कान्हा शर्म मोहे लागे, अकेली आऊं तो भूल जाऊं तेरी डगरी . दूर नगरी .. धीरे-धीरे चलूं तो कमर मोरी लचके झटपट चलूं तो छलकाए गगरी . दूर नगरी .. मीरा कहे प्रभु गिरधर नागर, तुमरे दरस बिन मैं तो हो गई बावरी . दूर नगरी ..
    म्हारो प्रणाम बांकेबिहारीको . मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे . कुण्डल अलका कारीको म्हारो प्रणाम अधर मधुर कर बंसी बजावै . रीझ रीझौ राधाप्यारीको म्हारो प्रणाम यह छबि देख मगन भई मीरा . मोहन गिरवरधारीको म्हारो प्रणाम
    दरस म्हारे बेगि दीज्यो जी ! ओ जी! अन्तरजामी ओ राम ! खबर म्हारी बेगि लीज्यो जी आप बिन मोहे कल ना पडत है जी ! ओजी! तडपत हूं दिन रैन रैन में नीर ढले है जी गुण तो प्रभुजी मों में एक नहीं छै जी ! ओ जी अवगुण भरे हैं अनेक, अवगुण म्हारां माफ करीज्यो जी भगत बछल प्रभु बिड़द कहाये जी ! ओ जी! भगतन के प्रतिपाल, सहाय आज म्हांरी बेगि करीज्यो जी दासी मीरा की विनती छै जी ! ओजी! आदि अन्त की ओ लाज , आज म्हारी राख लीज्यो जी!
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      म्हारो प्रणाम बांकेबिहारीको . मोर मुकुट माथे तिलक बिराजे . कुण्डल अलका कारीको म्हारो प्रणाम अधर मधुर कर बंसी बजावै . रीझ रीझौ राधाप्यारीको म्हारो प्रणाम यह छबि देख मगन भई मीरा . मोहन गिरवरधारीको म्हारो प्रणाम
        स्याम! मने चाकर राखो जी गिरधारी लाला! चाकर राखो जी . चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं . बिंद्राबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं .. चाकरी में दरसण पाऊं सुमिरण पाऊं खरची . भाव भगति जागीरी पाऊं, तीनूं बाता सरसी .. मोर मुकुट पीतांबर सोहै, गल बैजंती माला . बिंद्राबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला .. हरे हरे नित बाग लगाऊं, बिच बिच राखूं क्यारी . सांवरिया के दरसण पाऊं, पहर कुसुम्मी सारी . जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी . हरी भजनकूं साधू आया बिंद्राबन के बासी .. मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा . आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा ..
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