Sunday 14 October 2012

Devine Couple 1 Painting  - Devine Couple 1 Fine Art Print

ओ मेरे साँवरिया हर पल तू रहे
मेरे सामने देखू तुझे जी भर के
तुझसे ही गिले शिकवे साँवरिया

तुझी से ही हैं प्यार मेरे साँवरिया
तू ही मेरी आत्मा,तू ही दिल और जान
तुझ से ही हैं कायनात सारी
तुझ से ही हैं दिल के अरमान
जो दिया तूने उसका शुक्रिया भी तुझे
और जो दिए गम उसके गिले भी तुझी से हैं साँवरिया

कहते हैं कुछ के गम का गिला करते नही
पर प्यार अपनों से होता हैं तो
शिकवा भी अपनों से ही होता हैं साँवरिया
 

Each-other Painting  - Each-other Fine Art Print
दीप बना कर याद तुम्हारी, साँवरिया , मैं लौ बन कर जलती हूँ
प्रेम-थाल में प्राण सजा कर लो तुमको अर्पण करती हूँ।
साँवरिया विरह तुम्हारी किया राधा सह पाएँगी 
तुम रख लेना मेरी स्मृति को अपने मन के इक कोने में,
जैसे इक छोटा सा तारा दूर चमकता नील गगन में,
दग्ध ह्रदय में धधक रहे आहत पल के दंशों को अपने ,
आहुति के आँसू से धो कर आंगन लो अब मैं चलती हूँ।

O Guru/ Radhe, Krishna
allow me to become
a real devotee servant—
forgive me, help me:
forgive my failings/faults
help me rise higher
spiritual wings to fly
my potential now realized
empower me to inspire
actions, speech, written words
my heart’s flame blazing
giving what I’ve received
keeping the energy flow.
Photobucket
Divine Love Radiating Center
love of God touchstone
praying to assist Mahaprabhu
in distributing prema fruits
like a spiritual gardener
deputed by Shri Chaitanya
mercy without any limits—
as we distribute it
more and more available
to accept, give blessings
becoming our eternal joy
fully sheltered, giving shelter.
A famous, learned devotee
dreamed his knowledge vanished
only Krishna prema remained:
the fruit of knowledge
is loving, serving Krishna
when Krishna is loved
all questions are answered
actions flow from that
spiritual arguments are given
our speech is concise
yet profound and powerful
Krishna acts through us
we overflow with bliss.
Panca Tattva
Hare Krishna Hare Krishna
Krishna Krishna Hare Hare
Hare Rama Hare Rama
Rama Rama Hare Hare
fills up every corner
no space is empty
all vibrates peace/joy
an energy vortex created
individuals as a group
our hearts join together
separate rough edges rounded
unity by Krishna mantra
soul’s coming out party.

Wednesday 4 July 2012



श्यामा के यादों के अश्क

श्यामा तेरी यादों में जो अश्क बहते है ,

ये मेरे अंग का अनमोल रत्न है ,

इसे में अपने आँखों में समाये रखना चाहूंगी ज़िन्दगी 

भर ,अश्क बहार आये अगर तेरी यादों में मोती बनकर ,

उस अश्क को में कभी बहने न दूंगी ,

ये मेरा वादा है !! 

दोस्तों इस अनमोल रत्न को अगर कोई संभाल कर  

रखे तो उसके ज़िन्दगी में कभी कोई दुःख नाम का चीज़ 

नहीं रहेगा  !!


~ ~ जय श्री कृष्ण ~ ~ 


सादे रंग


सादे रंग को गलती से आप न कोरा समझो ,
इसी में समाये इन्द्रधनुषी सातों रंग ,

~ ~ सदा बहार ~ ~ 

जो दिखे आपको ज़िन्दगी सादगी भरी किसी की ,
तो आप यूँ समझो सतरंगी है दुनिया हमारी ।

~ ~ जय श्री राधे कृष्ण ~ ~ 

Kanha Kab Tak Bahenge Mere Ye Ashq ?

 Kanha Mera Apne Kisi Dost Ke Saath Koi Dushmani Nahi Hai,
 To Fir Q Koi Mujhe Baar Baar Pareshaan Kar Raha Hai ?
 Mera Kya Kasoor ?
 Koi Kare Or Hum Uska Saza Paye,
 Par Q Kanha ?
 Me Tumhaari Badkismat Waali Shradha Hoon.
 Kya Tumhare Seva Me Mujhse Koi Galti Hui Hai ?
 Jo Tum Mujhe Dukh Pe Dukh Diye Ja Rahe Ho ?
 Kanha Kab Tak Bahenge Mere Ye Ashq ?


हरे रामा-हरे रामा....रामा रामा हरे हरे....हरे कृष्णा हरे कृष्णा....कृष्णा कृष्णा हरे हरे...

 कृष्ण धुन में डूबे भक्त और हरी नाम में
 हर तरफ कृष्ण नाम का अनुपम स्वर लगे रहे सुबह शाम ।
 गले में तुलसी की माला डाले अपने प्रभु में लीन हो जाना
 प्रभु के नाम से कहीं कोई चिंता नहीं कोई बैर-भाव नहीं
 बस प्रभु का ही नाम लेते रहो हरदम
 भर दें प्रभु आप सभी के ज़िन्दगी में खुशियाँ ही खुशियाँ

 ~ ~ जय श्री कृष्णा ~ ~

Sunday 17 June 2012


श्री कृष्ण :- मनुष्य के लिए लक्ष्य विन्दु!
श्री राधा :- मनुष्य के लिए समस्त इन्द्रियों को वश में करने का आधार!
मोर पंख :- मनुष्य के लिए श्यान लगाने का साधन!
गौ :- मनुष्य के लिए सिद्धांतों एवं नियमों का सूत्र!
वृन्दावन :- मनुष्य के लिए आत्मचिंतन करने का स्थान!
नंदगाँव :- मनुष्य के लिए क्रीडा स्थली!
बरसाना :- मनुष्य के लिए प्रेम स्थली!
द्वारिका :- मनुष्य के लिए करम स्थली!
गोकुल :- मनुष्य के लिए ज्ञान स्थली!
गोवर्धन पर्वत :- मनुष्य के लिए अपने आप को पहचानने का मार्ग!
कान्हा की मुरली धुन :- मनुष्य की आत्मा की आवाज़!
महारास :- मनुष्य के लिए साक्षात गोकुल धाम में सुख का अनुभव



प्रश्न – किस नाम का जप करना चाहिए ?
उत्तर – साधक की जिस नाम रूप में श्रद्धा हो वही नाम जपना चाहिए| कलियुग में विशेषकर – हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे – हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, यह षोडश अक्षर का मंत्र बहुत दामी है| इस मंत्र का जप हर समय किया जा सकता है| इस मंत्र में राम कृष्ण हरी तीनों ही आते हैं|
राम अर्थात – जो सबमें रमण करें अथवा जिसमें योगी लोग रमण करते हो |
कृष्ण अर्थात – सच्चा आनंद अथवा सबको मोहने वाला|
हरी अर्थात – सबके पापों को हरने वाला|
हरी, राम, कृष्ण ये तीनों, तीनों ही युग में हुए, ये सच्चिदानंदघन ही थे|


महात्मा की परीक्षा – जहां स्वार्थ है वहाँ करामत नहीं है| स्वार्थ आने के बाद करामत भाग जाती है यानी वह महात्मा नहीं है| जहां भोग-विलास है वहाँ भी महात्मा नहीं है| उच्चकोटिका पुरुष कभी अपनेको श्रेष्ठ नहीं बतावेगा| दुसरे आदमी श्रेष्ठ बतावेंगे तो वे लज्जित हो जावेंगे| वक्ता ऐसा होना चाहिए जो पहले खुद करे फिर उसका प्रचार करे|

Friday 20 April 2012



भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्-जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है। श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों में नारी को विशेष स्थान मिला है। मनु स्मृति में कहा गया
है-
यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते रमन्‍ते तत्र देवता:।
यत्रेतास्‍तु न पूज्‍यन्‍ते सर्वास्‍तफला: क्रिया।।
जहाँ नारी का समादर होता है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ समस्त यज्ञादि क्रियाएं व्यर्थ होती हैं। नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते
हैं-
यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी।
देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।
जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।



नारी का सम्‍मान
हिन्दू धर्म की स्मृतियों में यह नियम बनाया गया कि यदि स्त्री रुग्ण व्यक्ति या बोझा लिए कोई व्यक्ति आये तो उसे पहले मार्ग देना चाहिये। नारी के प्रति किसी भी तरह का असम्मान गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया। नारी यदि शत्रु पक्ष की भी है तो उसको पूरा सम्मान देने की परम्परा बनाई। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है कि भगवान श्री राम बालि से कहते हैं-
अनुज बधू, भगिनी सुत नारी।
सुनु सठ कन्‍या सम ए चारी।। इन्‍हहिं कुदृष्टि विलोकई जोई।
ताहि बधे कछु पाप न होई।।
(छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी कन्या के समान होती हैं। इन्हें कुदृष्टि से देखने वाले का वध कर देना कतई पापनहीं है।)



सृष्टी के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक| पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं|
जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदाclip_image002[4]न की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।



शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। तो फिर क्या हैं शिव और शक्ति?
शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था।
शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।
शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।
शिव सागर के जल सामन हैं। शक्ति सागर की लहर हैं।
आइये हम समझने की कोशिश करते हैं। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरे के सामान हैं। लहर क्या है? जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। आएं तथा प्रार्थना करें शिव-शक्ति के इस अर्धनारीश्वर स्वरूप का इस अर्धनारीश्वर स्तोत्र द्वारा ।


Monday 27 February 2012







अनेक बार ऐसा देखा गया है कि सच्चे हृदय से भगवान् की प्रार्थना करने सेअपना इच्छित मनोरथ पूरा कर देने की प्रभु से याचना करने सेवह कार्य पूरा हो जाता है। इस प्रार्थना से सिद्धि मिलने का एक आध्यात्मिक रहस्य है- वह यह है कि प्रार्थना करने वाले को यह विश्वास रहता है कि (१) परमात्मा ऐसा शक्तिशाली है कि वह चाहे तो आसानी से मेरी इच्छा को पूरा कर सकता है। (२)परमात्मा दयालु है। उसके स्वभाव को  देखते हुए यह आशा की जा सकती है कि मेरे कार्य को पूरा कर देगा। (३) मेरी माँग उचितआवश्यक और न्याय संगत हैइसलिए परमात्मा की कृपा  मुझे प्राप्त होगी। (४) अपने अन्त:करण का श्रेष्ठतम भाग श्रद्धाविश्वास परमात्मा पर आरोपण करते हुए सच्चे हृदय से प्रार्थना कर रहा हूँ। इसलिए मेरी पुकार सुनी जायेगी। इन चारों तथ्यों के मिलने से याचक की आकांक्षा प्रबल हो उठती है और उसके पूरे होने का बहुत हद तक उसे विश्वास हो जाता है। आशा की किरणों का प्रकाश उसके अन्त:करण में बढ़ जाता है। ऐसे मानसिक स्थिति का होना सफलता की एक पूर्व भूमिका है। तरीका चाहे कोई भी होपर मनुष्य यदि अपनी मानसिक स्थिति ऐसी बना ले कि मेरा मनोरथ सफल होने की पूरी आशापूरी संभावना है। तो अधिकांश में उनके मनोरथ पूरे हो जाते हैंक्योंकि आशा और सम्भावनामयी मनोदशा के कारण शारीरिक और मानसिक शक्तियाँ असाधारण रूप से जाग उठती हैं और उत्तमोत्तम उपाय सूझ पड़ते हैं। मार्ग निकलते हैंएवं सहयोग प्राप्त होते हैंजिनके कारण सफलता का मार्ग बहुत आसान हो जाता है और प्राय: वह प्राप्त भी हो जाती है।

Tuesday 14 February 2012

GAURI


सब कहते है ये बावरी है पत्थर से बातें करती है किस दुनिया में ये रहती है कलयुग में कृष्णा ढूँढती है

Friday 3 February 2012

rasik sanware kinajar




HAPPY JANMASTAMI

~~
रसिक सांवरे की नजर हो इस तरफ
हमे मोर मुकुट वाला ही दिलदार चाहिए
बरसती रहे प्यार के मेघो से झड़ी
हमे इश्क से भरपूर गुलजार चाहिए,


teri ramat





~~
*हे कृष्ण * -

तेरी रहमतो को देख कर
आंख भर आती है
हाथ उठाने से पहले ही
दुआ कुबूल हो जाती है
*प्रेम से कहिये श्री राधे *


Wednesday 18 January 2012

मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों न भूल पाऊं....


इतनी कर दे दया श्री राधारमण, तेरे चरणों में जीवन बिताऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं....


प्रेम बंधन में यूं मुझको बांधो, डोर बंधन की टूटे कभी ना...
अपनी पायल का घुँघरू बना लो, दास चरणों से छुटे कभी ना...
अपने चरणों से ऐसे लगा लो, तेरे चरणों का गुणगान गाऊं....
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं....


अपनी नजरों से कभी न गिराना, नेक राहों पे मुझको चलाना...
दीनबंधु दया का खजाना, बेबसों पे हमेशा लुटाना....
मैं तो जैसा भी हूँ बस तुम्हारा, आके दर पे खड़ा सिर झुकाऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों न भूल पाऊं....


इतनी कर दे दया श्री राधारमण, तेरे चरणों में जीवन बिताऊं...
मैं रहु इस जगत में कही भी, तेरे श्री चरणों को न भूल पाऊं.... 

Wednesday 4 January 2012

जिधर देखती हु उधर तुम ही तुम हो




जिधर देखती हु उधर तुम ही तुम हो
न जाने कन्हैया तेरे ख्यालो में क्यो गुम हु
दिल में भी तू है
ऑखो में तू है
तेरी दीवानी है गौरी

हो तो तुम पास ही मेरे ओह मेरे श्याम
पर नजाने क्यों दर्शन ना देते हो श्याम
तेरी ही मूरत मन में बसी हैं घनशयाम
बसी हैं बन्सीवाले की बाँकी अदा
जिसने सारे जग को दीवाना हैं किया
मोर मुकुट लगाये घूमते हो हिये में हमारे
बंसी बजाके हिये को चुरा के
अब चित चोर तुम जाते हो कहा
आँखों का पर्दा तो हटा दो
मोहे दरस अपने तो करवा दो