Wednesday, 4 July 2012


Kanha Kab Tak Bahenge Mere Ye Ashq ?

 Kanha Mera Apne Kisi Dost Ke Saath Koi Dushmani Nahi Hai,
 To Fir Q Koi Mujhe Baar Baar Pareshaan Kar Raha Hai ?
 Mera Kya Kasoor ?
 Koi Kare Or Hum Uska Saza Paye,
 Par Q Kanha ?
 Me Tumhaari Badkismat Waali Shradha Hoon.
 Kya Tumhare Seva Me Mujhse Koi Galti Hui Hai ?
 Jo Tum Mujhe Dukh Pe Dukh Diye Ja Rahe Ho ?
 Kanha Kab Tak Bahenge Mere Ye Ashq ?


हरे रामा-हरे रामा....रामा रामा हरे हरे....हरे कृष्णा हरे कृष्णा....कृष्णा कृष्णा हरे हरे...

 कृष्ण धुन में डूबे भक्त और हरी नाम में
 हर तरफ कृष्ण नाम का अनुपम स्वर लगे रहे सुबह शाम ।
 गले में तुलसी की माला डाले अपने प्रभु में लीन हो जाना
 प्रभु के नाम से कहीं कोई चिंता नहीं कोई बैर-भाव नहीं
 बस प्रभु का ही नाम लेते रहो हरदम
 भर दें प्रभु आप सभी के ज़िन्दगी में खुशियाँ ही खुशियाँ

 ~ ~ जय श्री कृष्णा ~ ~

Sunday, 17 June 2012


श्री कृष्ण :- मनुष्य के लिए लक्ष्य विन्दु!
श्री राधा :- मनुष्य के लिए समस्त इन्द्रियों को वश में करने का आधार!
मोर पंख :- मनुष्य के लिए श्यान लगाने का साधन!
गौ :- मनुष्य के लिए सिद्धांतों एवं नियमों का सूत्र!
वृन्दावन :- मनुष्य के लिए आत्मचिंतन करने का स्थान!
नंदगाँव :- मनुष्य के लिए क्रीडा स्थली!
बरसाना :- मनुष्य के लिए प्रेम स्थली!
द्वारिका :- मनुष्य के लिए करम स्थली!
गोकुल :- मनुष्य के लिए ज्ञान स्थली!
गोवर्धन पर्वत :- मनुष्य के लिए अपने आप को पहचानने का मार्ग!
कान्हा की मुरली धुन :- मनुष्य की आत्मा की आवाज़!
महारास :- मनुष्य के लिए साक्षात गोकुल धाम में सुख का अनुभव



प्रश्न – किस नाम का जप करना चाहिए ?
उत्तर – साधक की जिस नाम रूप में श्रद्धा हो वही नाम जपना चाहिए| कलियुग में विशेषकर – हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे – हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, यह षोडश अक्षर का मंत्र बहुत दामी है| इस मंत्र का जप हर समय किया जा सकता है| इस मंत्र में राम कृष्ण हरी तीनों ही आते हैं|
राम अर्थात – जो सबमें रमण करें अथवा जिसमें योगी लोग रमण करते हो |
कृष्ण अर्थात – सच्चा आनंद अथवा सबको मोहने वाला|
हरी अर्थात – सबके पापों को हरने वाला|
हरी, राम, कृष्ण ये तीनों, तीनों ही युग में हुए, ये सच्चिदानंदघन ही थे|


महात्मा की परीक्षा – जहां स्वार्थ है वहाँ करामत नहीं है| स्वार्थ आने के बाद करामत भाग जाती है यानी वह महात्मा नहीं है| जहां भोग-विलास है वहाँ भी महात्मा नहीं है| उच्चकोटिका पुरुष कभी अपनेको श्रेष्ठ नहीं बतावेगा| दुसरे आदमी श्रेष्ठ बतावेंगे तो वे लज्जित हो जावेंगे| वक्ता ऐसा होना चाहिए जो पहले खुद करे फिर उसका प्रचार करे|

Friday, 20 April 2012



भारतीय संस्कृति में नारी का उल्लेख जगत्-जननी आदि शक्ति-स्वरूपा के रूप में किया गया है। श्रुतियों, स्मृतियों और पुराणों में नारी को विशेष स्थान मिला है। मनु स्मृति में कहा गया
है-
यत्र नार्यस्‍तु पूज्‍यन्‍ते रमन्‍ते तत्र देवता:।
यत्रेतास्‍तु न पूज्‍यन्‍ते सर्वास्‍तफला: क्रिया।।
जहाँ नारी का समादर होता है वहाँ देवता प्रसन्न रहते हैं और जहाँ ऐसा नहीं है वहाँ समस्त यज्ञादि क्रियाएं व्यर्थ होती हैं। नारी की महत्ता का वर्णन करते हुये ”महर्षि गर्ग” कहते
हैं-
यद् गृहे रमते नारी लक्ष्‍मीस्‍तद् गृहवासिनी।
देवता: कोटिशो वत्‍स! न त्‍यजन्ति गृहं हितत्।।
जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुख पूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं। हे वत्स! करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते।



नारी का सम्‍मान
हिन्दू धर्म की स्मृतियों में यह नियम बनाया गया कि यदि स्त्री रुग्ण व्यक्ति या बोझा लिए कोई व्यक्ति आये तो उसे पहले मार्ग देना चाहिये। नारी के प्रति किसी भी तरह का असम्मान गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया। नारी यदि शत्रु पक्ष की भी है तो उसको पूरा सम्मान देने की परम्परा बनाई। गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरित मानस’ में लिखा है कि भगवान श्री राम बालि से कहते हैं-
अनुज बधू, भगिनी सुत नारी।
सुनु सठ कन्‍या सम ए चारी।। इन्‍हहिं कुदृष्टि विलोकई जोई।
ताहि बधे कछु पाप न होई।।
(छोटे भाई की पत्नी, बहिन, पुत्र की पत्नी कन्या के समान होती हैं। इन्हें कुदृष्टि से देखने वाले का वध कर देना कतई पापनहीं है।)



सृष्टी के निर्माण के हेतु शिव ने अपनी शक्ति को स्वयं से पृथक किया| शिव स्वयं पुरूष लिंग के द्योतक हैं तथा उनकी शक्ति स्त्री लिंग की द्योतक| पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं|
जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायं अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाय। तब अपने समस्या के सामाधान के हेतु वो शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा के समस्या के सामाधान हेतु शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रगट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजन्नशिल प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदाclip_image002[4]न की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के सामान महत्व का भी उपदेश दिया। इसके बाद अर्धनारीश्वर भगवान अंतर्धयान हो गए।



शक्ति शिव की अभिभाज्य अंग हैं। शिव नर के द्योतक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दुसरे के पुरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं। तो फिर क्या हैं शिव और शक्ति?
शिव कारण हैं; शक्ति कारक।
शिव संकल्प करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी।
शक्ति जागृत अवस्था हैं; शिव सुशुप्तावस्था।
शक्ति मस्तिष्क हैं; शिव हृदय।
शिव ब्रह्मा हैं; शक्ति सरस्वती।
शिव विष्णु हैं; शक्त्ति लक्ष्मी।
शिव महादेव हैं; शक्ति पार्वती।
शिव रुद्र हैं; शक्ति महाकाली।
शिव सागर के जल सामन हैं। शक्ति सागर की लहर हैं।
आइये हम समझने की कोशिश करते हैं। शिव सागर के जल के सामान हैं तथा शक्ति लहरे के सामान हैं। लहर क्या है? जल का वेग। जल के बिना लहर का क्या अस्तित्व है? और वेग बिना सागर अथवा उसके जल का? यही है शिव एवं उनकी शक्ति का संबंध। आएं तथा प्रार्थना करें शिव-शक्ति के इस अर्धनारीश्वर स्वरूप का इस अर्धनारीश्वर स्तोत्र द्वारा ।