Thursday, 15 September 2011

~~राधाकृष्ण: नि:स्वार्थ प्रेम ही पूजनीय है~~~

वैसे तो सभी रिश्ते-नातों का अपना विशेष महत्व है, सभी के अपने अलग कर्तव्य और अधिकार हैं। परमात्मा द्वारा किस परिवार में हमें जन्म दिया गया है उसी के अनुसार हमारे सभी रिश्ते-नाते निर्धारित होते हैं। जन्म से जुड़े रिश्तों के अतिरिक्त एक रिश्ता है प्रेम का। किसी से नि:स्वार्थ प्रेम का रिश्ता सदैव पूजनीय है यह संदेश दिया है श्रीकृष्ण ने। श्रीकृष्ण और राधा इस बात का उदाहरण है कि नि:स्वार्थ प्रेम हर रिश्ते से बढ़कर पवित्र और महान हैं। इसी वजह से श्रीकृष्ण की पूजा राधा के साथ ही की जाती है।
रिश्तों में माता-पिता और गुरु का स्थान ईश्वर के समान ही बताया गया है और यह लोग सदैव आदर और मान-सम्मान प्राप्त करने के अधिकारी भी हैं। इनका अनादर करने वाले से भगवान कभी प्रसन्न नहीं हो सकते। स्वयं भगवान विष्णु ने जब-जब अवतार लिया है उन्होंने माता-पिता और गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और भक्ति रखने का ही संदेश दिया है। कोई भी व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक असंख्य लोगों के संपर्क में आता है। कुछ विशेष लोगों से उसे स्नेह हो जाता है, कुछ मित्र बन जाते हैं। इन सभी लोगों में किसी खास शख्स के प्रति हमारा मन नि:स्वार्थ भाव से प्रेम करने लगता है। ऐसा ही प्रेम था राधा और श्रीकृष्ण के बीच। इनका प्रेम की कोई सीमा नहीं है, दोनों ही एक-दूसरे से असीम प्रेम रखते है। इनके प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं कोई अपेक्षा नहीं है।
गोकुल में ऐसी कोई गोपी न थी जिसे श्रीकृष्ण से प्रेम न हो। हर गोपी का प्रेम पवित्र और भक्तिपूर्ण था। सभी श्रीकृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में ही देखती थी और श्रीकृष्ण भी सभी को वैसा ही स्नेह प्रदान करते थे। इन सभी गोपियों में राधा का स्थान सर्वोच्च है। राधा का प्रेम इतना गहरा और महान है कि उन्होंने अपना सर्वस्व श्रीकृष्ण पर न्यौछावर कर दिया और अपने मन को पूरी तरह से श्रीकृष्ण के चरणों में लगा दिया। श्रीकृष्ण भी राधा के प्रेम में पूरी तरह से रंग गए।
श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम की गहराई को दर्शाते कई प्रसंग हमारे धर्म ग्रंथों में दिए गए हैं। उन्हीं के अनुसार एक बार राधा से श्रीकृष्ण से पूछा- हे कृष्ण तुम प्रेम तो मुझसे करते हों परंतु तुमने विवाह मुझसे नहीं किया, ऐसा क्यों? मैं अच्छे से जानती हूं तुम साक्षात भगवान ही हो और तुम कुछ भी कर सकते हों, भाग्य का लिखा बदलने में तुम सक्षम हों, फिर भी तुमने रुकमणी से शादी की, मुझसे नहीं।
राधा की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया- हे राधे, विवाह दो लोगों के बीच होता है। विवाह के लिए दो अलग-अलग व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। तुम मुझे यह बताओं राधा और कृष्ण में दूसरा कौन है। हम तो एक ही हैं। फिर हमें विवाह की क्या आवश्यकता है। नि:स्वार्थ प्रेम, विवाह के बंधन से अधिक महान और पवित्र होता है। इसीलिए राधाकृष्ण नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं और सदैव पूजनीय हैं।


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