Thursday, 15 September 2011

जगत् में चराचर के स्वामी, दुनिया को कर्म,अकर्म का पाठ पढ़ाने वाले, गोपियों से लेकर ज्ञानियों तक सबको मंत्रामुग्ध और अपने वश में कर लेने वाले, तीनों लोकांे में एकछत्रा राज्य करने वाले, दुष्टों के भय और भक्तों के बल कृष्ण का नाम स्मरण मात्रा ही जन्म मरण के बंधन से मुक्त कर देता है। कृष्ण सचमुच कृष्ण हैं और सारी दुनियां को अपने आकर्षण में ऐसा बांधते हैं कि बंधन में बंधने वाला स्वयं ही उनके बांधे बंधन में बंधा रहना चाहता है।


कृष्ण कभी कर्मयोगी लगते हैं तो कभी छलिया, कभी उनमें भगवान के दर्शन होते हैं तो कभी वे एक साधारण से मानव नजर आने लगते हैं। कृष्ण को समझने में बड़े बडे तपस्वी त्रिलोकदर्शी, ज्ञानी जहां ‘नैति नैति‘ करने को मजबूर हो जाते हैं, वहीं अनपढ़ और गंवार समझे जाने वाले ग्वाले, गोपियां उन्हें पा जाते हैं। यदि सच कहा जाए तो कृष्ण कभी भी समझ में न आने वाले ऐसे तत्व हैं जिन्हें समझने के लिये सारे पोथे, पुस्तक, ग्रंथ अपर्याप्त रह जाते हैं और पे्रम के ढाई अक्षर से वे वश में हो जाते हैं।
कृष्ण पैदा होते ही लीला करने का दूसरा नाम हैं। उन्हे आते देख रौद्र रुप में बहने वाली यमुना स्वयंमेव ही उतर जाती है तो इसमें कोई न कोई बात तो जरुर है। कृष्ण देवकी की आठवीं संतान के रुप में जन्म लेते हैं तो यह भी एक पूर्व निर्धारित योजना ही होती है क्योंकि यदि वे ऐसा नहीं करते तो शापग्रस्त उन सात वसुओं का क्या होता जो न जाने कब से उनके जन्म लेने का इंतजार कर रहे थे और यदि वें पहली ही संतान के रुप में पैदा होकर आनन फानन में कंस का वध कर देते तो सारी दुनिया उस सुंदर ललाम लीला से वंचित ही रह जाती जिसे सुन कर आज इस मृत्युलोक के चराचर मोक्ष धाम के भागी बन जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो श्रीभगवान के चरणों में जगह पा जाते हैं।
कृष्ण बंधन भी है और मुक्ति भी। वे बांधते भी हैं और बंधते भी हैं। कृष्ण जहां अपने भक्तों को अपने आकर्षण में बांधते हैं, वहीं वे उन्हे माया मोह के बंधन से मुक्त भी करते हैं। कृष्ण ही अपने चाहने वालों को जन्म और मृत्यु के झंझटों से मुक्ति दिलाने वाले परम प्रभु हैं। वे हर कदम पर अपने चाहने वालों का पूरा पूरा ख्याल रखते हैं।
कृष्ण जहां कई्र बार लीला करते, तड़पाते सताते लगते हैं वही उचित अवसर पर वे बिना देर किये अपने भक्त की रक्षा के लिये कभी सुदर्शन चक्र्र लेकर तो कभी मान भंग होने से बचाने के लिये अपनी उंगली पर बरसों पहले बांधी गई पट्टी का चीर लिये सदैव तत्पर, सदैव हाजिर मिलते हैं यानी कृष्ण अपने भक्तों का मानभंग तो कतई ही नहीं होने देते
कृष्ण जिस तरह का आचरण करते हैं, उसे देखकर शायद ही उन्हें कोइ्र्र भगवान का दर्जा दे पाये पर फिर भी मजेदार बात यह है कि कृष्ण आज भी अपने भक्तों के बीच भगवान का दर्जा पाये हुये हैं और उन्हें इस दर्जे से शायद ही कभी कोई हटा पाये। कृष्ण अपने जन्म से ही दिव्य लगते हैं। कंस के तमाम प्रयासों के बावजूद वे न केवल कंस की पकड़ से बाहर हो जाते हैं बल्कि उसके ही घर में जाकर उसके ही राज्य में उसका वध कर डालते हैं। कृष्ण मां के रुप में आई पूतना का दूध पीकर उसे मां का सम्मान देतेे है तो उसकी दुष्प्रवृत्ति के लिये उसका वध भी करने में भी देर नहीे लगाते।
कृष्ण जहां ऋषि मुनियों को अपने रहस्य को जानने में छकाते, तड़पाते हैं, वहीं निरक्षर और भोले भाले गोकुलवासियों को, बृजवासियों को ग्वालों को बिना किसी तप जप के ही अपने दर्शन देकर उन्हे अपने धाम बुला लेते हैं।
कृष्ण मानव के रुप में भी उतना ही लुभाते हैं जितना कि ईश्वर के रुप में । उनका एक एक कार्य मन में घर कर जाता है। उनका यशोदा को रिझाना, गोपियों को तड़पाना , सुदामा की मदद करना ,विदुर के घर दुर्योधन के पकवान ठुकराकर साग रोटी खाना ,अर्जुन और दुर्योधन दोनों को ही संतुष्ट करते हुये कूटनीतिक तरीके से एक तरफ खुद को तो दूसरी तरफ अपनी सेना को दे देना कृष्ण का दोनों हाथों में लड्डू रखने की रणनीति को दर्शाता है।
कृष्ण युद्ध में साम ,दाम, दंड ,भेद सबको ही अपने प्रिय पांडवों की जीत के लिये आजमाते हैं । वहां वे न उचित देखते हैं और न अनुचित, बस एक ही लक्ष्य साधते हैं, जीत का लक्ष्य । और अंततोगत्वा उसमें सफल भी होते हैं । सच कहा जाये तो कृष्ण सफलता का ही दूसरा नाम हैं ।
कन्हैया , कृष्ण , पीताम्बर ,देवकीनंदन ,वासुदेव ,यशोदानंदन, जो मर्जी कहिये पर कृष्ण सिर्फ कृष्ण हैं । सारी दुनिया के लिये एक कभी भी खत्म न होने वाला आकर्षण । ऐसा आकर्षण ,जो हर पल हर रुप में पूरा पूरा सुख देता है । सचमुच अद्भुत और अनुपम हैं ं कृष्ण।

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