Wednesday, 12 October 2011

राधे-राधे जाप रे !!

कहाँ गए वे सुहाने पंछी !  
कित उनकी मुष्कान रे ! 
मैं दीवाना ठगा रह गया !
काऊ न राखे मान रे !!
आकर लुटा हुआ मैं भिकारी !
सफल होगये चतुर शिकारी!
हो गयी चूक मैं चेत न पायो !
वृथा समय मैंने यूँही गंवायो !
अपने हु ह्वै गए आन रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
स्वप्न के बादल फट गए सबरे !
चली हवा जो सच्चाई ! 
दुखी वेचारे मन मेरे प्यारे !
समझे क्यों न गहराई ! 
उठ कर चलदे अमर सुधा को !
न हो जहाँ कोई तन्हाई ! 
संग रहेंगे सखा हमारे !
गोविन्द-गोपाल-कन्हाई !! 
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
 इसी धरा पे पाई सफलता !
लगन के सच्चे वीरों ने ! 
तजि कायरता दौड़ पड़े जो !
कर्म के मीठे गीतों ने ! 
रेख बना योजना डगर की !
तोड़ बंधन जंजीरों को !
रख विश्वास नन्द-नंदन में !
भूल जा दुःख की लकीरों को !
हानि-लाभ-जीवन अरु मृत्यु !
यश-अपयश नहीं भान रे !! 
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
पार्थ-सारथी सुझा रहे तोहि !
करके गीता गान रे ! 
चिंतन श्याम में-लगन श्याम में !
प्रीत श्याम में राखि रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
मुरलीधर की रूप माधुरी !
बना ले अपनी प्यास रे !
माखन-चाखन हार के संग-संग !
मीठो-माखन चाख रे !!
कहाँ गए वे सुहाने पंछी !
 कित उनकी मुष्कान रे !!
भूल जा सबरी पीर अरु पीरा!
   राधे-राधे जाप रे !!

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