Friday, 14 October 2011

करूँ बारम्बार प्रणाम,बारम्बार प्रणाम.



छोटी-छोटी हथेलियाँ
आँखों को है मसल रही
डर से हालत कैसी है
आँखें उसकी कह रही

माँ के हाथ में लाठी देख
सुदर्शन धारी भी रो रहे
इसे प्रेम की पराकाष्ठा नही
तो और बताओ क्या कहे

रो रो के गला है भारी
आँखें भी हैं हुई बेहाल
कौन कहे इसे परमेश्वर
ये तो बस मैया का लाल

कहते जिसे देख भय भी कांपे
कैसे उनकी सिसकियाँ चल रही
रूदन के वेग से कैसे उनकी
गले की माला भी है कांप रही

रस्सी का बंधन नही है ये
प्रेम पाश में बंध गए कन्हैया
वात्सल्य प्रेम में ऐसे डूबे कि
बाँध गयी उनको यशोदा मैया

प्रेम का आदान-प्रदान ही तो
प्रभु का एकमात्र है काम
ऐसे नित्य प्रेमी को मै

करूँ बारम्बार प्रणाम,बारम्बार प्रणाम.

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