Sunday, 16 October 2011

जो चढ़ ही चुका हरि चरणों पे,

जो चढ़ ही चुका हरि चरणों पे,
उसे हानि लाभ की क्या चिन्ता
जब मस्त शमा पे परवाना 
उसे जीवन मरण की क्या चिन्ता 
जो चल दरबार पे आया हैं 
उसे अपनी अकाल से क्या मतलब 
सिर रख के उठाया नही जाता
उसे सिर और धड की क्या चिन्ता 
मत प्रेम खिलौना जानो तुम
जरा प्रेम तत्व पहचानो तुम
जब तन में भसम रमा ही ली 
तो बनने बनाने की क्या चिन्ता 
यह मार्ग प्रेम का दीवानों 
मत खेल करो तुम नादानों 
जब इश्क लगाया प्रियतम से Sakhi Bhav - Kishorikripa
फिर कहने कहाने की क्या चिन्ता 

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